दूसरा भाग वाकाटक राज्य ( सन् २४८-२८४ ई० ) वाकाटक साम्राज्य (सन् ८४-३४८ ई० ) और परवर्ती वाकाटक काल (सन् ३४८-५५० ई०) के संबंध में एक परिशिष्ट' वाकाटकललामस्य क्रमप्राप्तनृपश्रियः-वाकाटक मोहर । ७. वाकाटक ६५२. वाकाटक शिलालेखों आदि से नीचे लिखी बातें भली भाँति सिद्ध होती हैं । समुद्रगुप्त की विजयों से प्रायः एक सौ वर्ष पहले वाकाटक नाम का एक राजवंश वाकाटक और उनका हुआ था। इस राजवंश का पहला राजा विंध्यशक्ति नाम का एक ब्राह्मण था। इन राजाओं का गोत्र विष्णुवृद्ध था और यह भारद्वाजों का एक उपविभाग है। इस राजवंश का दूसरा १. वाकाटकों का परवर्ती इतिहास (सन् ३४८-५५० ई०) इसमें इसलिये सम्मिलित कर लिया गया है कि एक तो उसका सांस्कृतिक दृष्टि से महत्व था और दूसरे और कहीं उसका वर्णन भी नहीं हुआ था। २. जान पड़ता है कि यह उसका असली नाम नहीं था, बल्कि राज्याभिषेक के समय धारण किया हुअा अभिषेक-नाम था, देश के नाम पर रखा गया था जिस देश में उसकी शक्ति का उदय महत्त्व और उस हुश्रा था।
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