पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२१३

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(१८३) १०. परवर्ती वाकाटक काल संबंधी परिशिष्ट (सन् ३४८-५५० ई.) और वाकाटक संवत् ( सन् २४८-४६ ई० ) ६६१. पृथिवीपेण प्रथम के काल (सन ३४६-३७५ ई.) और उसकी कुंतल-विजय ( लगभग सन् ३६० ई.) का आरं- भिक काल से ही अधिक संबंध है। पर- प्रवरसेन द्वितीय और वर्ती वाकाटक का काल रुद्रसेन द्वितीय नरेंद्रसेन ( लगभग ३७५-३६५ ई.) के समय से आरंभ होता है; और रुद्रसेन द्वितीय के समय में इसके सिवा और कोई विशेष घटना नहीं हुई थी कि उसने अपने श्वसुर चंद्रगुप्त द्वितीय के प्रभाव में पड़कर अपना शैव- मत छोड़कर वैष्णव-मत ग्रहण कर लिया था। इसके उपरांत उसकी विधवा स्त्री प्रभावती गुता ने अपने अल्प-वयस्क पुत्रों की अभिभाविका के रूप में लगभग बीस वर्षों तक शासन किया था, और यह काल चंद्रगुप्त द्वितीय के काल के लगभग एक या दो वर्ष बाद तक भी पहुँच सकता है । उसका पुत्र प्रवरसेन द्वितीय कुमार- गुप्त का सम-कालीन था, और जान पड़ता है कि मृत्यु के उसकी अवस्था कुछ अधिक नहीं थी, क्योंकि प्रवरसेन द्वितीय का पुत्र आठ वर्ष की अवस्था में सिंहासन पर बैठा था। अजंतावाले शिलालेख के अनुसार प्रवरसेन द्वितीय के पुत्र ने “अच्छी तरह समय १. पृथिवीपेण प्रथम ने कंगवर्मन् कदंब को सन् ३६० ई० के लगभग परास्त किया था । देखो यागे तीसरा भाग ।