सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २५४ ) रिक चाल चली होगी, क्योंकि पल्लवों के सभी नेता चारों ओर से समुद्रगुप्त की सेनाओं से घिर गए थे। उनका सारा संघटन छिन्न-भिन्न हो गया और उन सब लोगों ने आत्म-समर्पण कर दिया । समुद्रगुप्त ने उनके साथ कुछ शर्ते तै करके फिर उनको स्वतंत्र कर दिया। अब समुद्रगुप्त उस स्थान से, जो बेजवादा और राजमहेंद्री के बीच में था, लौट पड़ा। उसे कांची तक जाने की कोई आवश्यकता नहीं थी और न उस समय उसे पूर्वी समुद्र-तट अथवा पश्चिमी समुद्र-तट के किसी दूसरे दक्षिणी राज्य से कोई मतलब था। पल्लव वर्ग के सब राजाओं को परास्त करके और उदारता तथा नीतिपूर्वक उन पर विजय प्राप्त करके और उन्हें वाकाटकों की अधीनता से निकालकर ओर उनसे अलग करके तुरंत ही जल्दी जल्दी चलकर बिहार लौट आया। वहाँ से लौटने पर उसने रुद्रदेव पर चढ़ाई की। यह रुद्रदेव भी उसी प्रकार वीरतापूर्वक लड़ा था, जिस प्रकार वीरतापूर्वक उसके उत्तरी अधीनस्थों में से प्रत्येक राजा लड़ा था और अपने उन सहायकों के साथ वह युद्ध-क्षेत्र में मारा गया था। कदाचित् उसकी मृत्यु एरन के युद्धक्षेत्र में हुई थी ( देखो ६ १३७ )। ६ १३५ क. अपने संभलपुरवाले मार्ग में समुद्रगुप्त कोसल से पिष्ठपुरक महेंद्रगिरिक-कौटूरक स्वामिदत्त; (५) एरंड-पल्लक दमन; (६) कांचेयक विष्णुगोप; (७) श्रावमुक्तक नीलराज; (८) वैगे- यक हस्तिवर्मन्; (६) पालक्कक उग्रसेन; (१०) देवराष्ट्रफ कुबेर; (११) कौस्थलपुरक धनंजय; प्रभृति सर्व-दक्षिणापथ-राज; श्रादि श्रादि ।