पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२९

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( ५ ) ६२. यह कथन पूर्ण रूप से असत्य है कि साम्राज्य भोगी गुप्तों के उदय से पहले भारत में कोई एक सर्व-प्रधान शक्ति नहीं थी और न इस पक्ष का क्षण भर के लिये साम्राज्य-शक्ति स्थापन या मंडन ही हो सकता है। हिंदू का पुनर्घटन साम्राज्य-पुनर्घटन का आरंभ चौथी शताब्दी में समुद्रगुप्त से नहीं माना जा सकता और न वाकाटकों से ही माना जा सकता है जो इससे प्रायः एक शताव्दी पूर्व हुए थे; बल्कि उसका आरंभ भार-शिवों से होता है जो उनसे भी प्रायः पचास वर्ष पूर्व हुए थे। डाक्टर विंसेंट स्मिथ के इतिहास में वाकाटकों के संबंध में एक भी पंक्ति नहीं है और न किसी दूसरी पाठ्य पुस्तक में भार-शिवों के संबंध में ही एक भी पंक्ति है । यद्यपि इन दोनों राजवंशों का मुख्य इतिहास भलीभाँति से प्रमाणित ताम्रलेखों तथा शिलालेखों में वर्तमान है, और जैसा कि हम आगे चलकर बतलावेंगे पूर्ण रूप से पुराणों में भी दिया हुश्रा है और उसका समर्थन सिक्कों से भी होता है, तो भी किसी ऐतिहासिक या पुरातत्त्व संबंधी सामयिक पत्र में भार-शिवों के संबंध में लिखा हुआ कोई लेख भी मैंने नहीं देखा है। इस चूक और उपेक्षा का कारण यही है कि फ्लीट तथा और लोगों ने, जिन्होंने शिलालेखों और ताम्रलेखों का संपादन किया है, उन लेखों को पढ़ तो डाला है, पर उनमें दी हुई घटनाओं का अध्ययन नहीं किया है। और विंसेंट स्मिथ ने भारत के इतिहास का सिंहावलोकन करते समय, इस काल को फ्लीट तथा कीलहान का अनुकरण करते हुए, बिलकुल छोड़ दिया है। और इसीलिये यह कह दिया गया है कि इस काल की घटनाओं का कुछ भी पता नहीं चलता। पर वास्तविक बात यह है कि भारतीय इतिहास के और बहुत से कालों की तुलना में यह काल