(२७६) की दूरी पर आज-कल जो काकपुर नामक स्थान है, वहीं प्राचीन काल में काक लोग रहते थे। और साँची की पहाड़ी काकनाड कहलाती थी। चंद्रगुप्त द्वितीय के समय एक सहसानीक महा. राज ने, जो कदाचित् सहसानीकों का प्रजातंत्री नेता और प्रधान था, उदयगिरि की चट्टानों पर चंद्रगुप्त-मंदिर बनवाया था। भाभीरों के संबंध में हमें भागवत से बहुत सहायता मिलती है । भागवत में कहा गया है कि भाभीर लोग सौराष्ट्र और आवंत्य शासक (सौराष्ट्राबन्त्यआभीराः ) थे। और विष्णुपुराण में भी कहा गया है कि भाभीरों का सौराष्ट्र और अवंती प्रांतों पर अधिकार था । वाकाटक इतिहास से हमें यह भी ज्ञात है कि पश्चिमी मालवा में पुष्यमित्र लोग और दो ऐसे दूसरे प्रजातंत्री लोग रहते थे, जिनके नाम के अंत में "मित्र" शब्द था। ये आभीर प्रजातंत्र थे; और आगे चलकर गुप्त इतिहास में हम देखते हैं कि उनके स्थान पर मैत्रक लोग आ गए थे, जिनमें एकतंत्री शासन प्रचलित था। आभीरों से प्रारंभ होने वाला और खर्परिकों से समाप्त होने वाला यह वर्ग काठियावाड़ और गुजरात से आरंभ होकर दमोह तक अर्थात् मालवा प्रजातंत्र के नीचे और वाकाटक राज्य के ऊपर एक सीधी रेखा में था। पेरिप्लस के समय में आभीर लोग गुज- रात में रहते थे और डा० वि० स्मिथ ने जो बुंदेलखंड में उनका स्थान निश्चित किया है ( रा० ए० सो० का जरनल, १८६७, पृ० ३०) वह किसी तरह ठीक और न्यायसंगत नहीं हो सकता। डा. स्मिथ ने यह निश्चय इसीलिये किया था कि उनके समय में लोगों में यह भ्रमपूर्ण विचार फैला हुआ था कि काठियावाड़ और १. बिहार और उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी का जरनल, खंड १८, पृ. २१३ ।
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