( २६६) आंधों की अधीनता में पाँच सम-कालीन वंशों की स्थापना हुई थी। यथा- वायु०-आंध्राणाम् संस्थिताः पंच तेषां वंशाः समाः पुनः । -वायु० ३७, ३५२' । ब्रह्मांड०-आंध्राणाम् संस्थिताः पंच तेषां वश्याः ये पुनः । -ब्रह्मांड०७४, ७१२ । इसके विपरीत मत्स्यपुराण, भागवत और विष्णुपुराण में पाँच की संख्या नहीं दी गई है, बल्कि इस प्रकार के तीन राजवंशों का वर्णन आया है। वायुपुराण और ब्रह्मांडपुराण में दो राजवंशों के नाम भी दिए हुए हैं; और ये वही दोनों नाम हैं जो मत्स्यपुराण और भागवत में भी पाए हैं, अर्थात् उनमें नामशः आभीरों और अधीनस्थ आंध्रों का उल्लेख है; परंतु उनका आशय तीन राजवंशों से है, क्योंकि उनमें कहा गया है कि आंध्र के अंतर्गत हम दों राजवंशों के वर्ष दे रहे हैं। वायुपुराण और ब्रह्मांडपुराण में जो पाँच राजवंशों की गिनती गिनाई गई है, उससे अनुमान होता है कि कदाचित् उन्होंने अपनी सूची में मुंडानंदों और महारथी-वंश (मैसूर के कल्याण महारथी का वंश) भी उसमें सम्मिलित कर लिया है, जिनका पता उनके सिक्कों से चलता है । परंतु इन दोनों राजवंशों का कुछ पहले ही अंत हो चुका था, इसलिये दूसरे पुराणों में केवल तीन राजवंशों का उल्लेख किया गया था। पुराणों में उन्हीं राजवंशों के वर्ष तथा क्रम दिए गए हैं जो अगले १. Bibliotheca Indica, खंड २, पृ० ४५३. २. बंबई का वेंकटेश्वरवाला संस्करण, पृ० १८६. ३. १. रैप्सन-कृत C. A. D. पृ० ५७-६०, ( संशोधन, पृ० २१२ में । )
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