पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३२९

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(३०१) परंतु इस वंश का उल्लेख केवल उसी में मिलता है, और किसी स्थान पर नहीं मिलता। मत्स्यपुराण में यह भी कहा गया है कि ये सब वंश अधीनस्थ या सामंत आंधों के समकालीन थे और इसलिये यह जान पड़ता है कि वे भी सातवाहनों के ही स्थापित किए हुए थे; परंतु आंधों के समय में कदाचित् उनका उतना अधिक महत्व नहीं था, जितना बाकी दोनों राजवंशों का था। अब हम इन तीनों राजवंशों के इतिहास का विवेचन करते हैं। १५४. आंध वही हैं जिन्हें विष्णुपुराण में आंध मृत्यु कहा गया है, अर्थात् वे अधीनस्थ आंध हैं। मत्स्यपुराण, वायुपुराण और ब्रह्मांडपुराण में सबसे पहले उन्हीं का श्रधनस्थ अांध्र विवेचन हुआ है । इस वंश में सात पीढ़ियाँ और श्री-पार्वतीय हुई थीं। इस विषय में भागवत भी उक्त पुराणों से सहमत है, पर उसमें अंतर केवल इतना ही है कि उसमें आभीरों को आंधों से पहले रखा गया है। परंतु इस बात से हमारे विवेचन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि ये दोनों ही वंश सम-कालीन थे। भागवत ने कदाचित् भौगोलिक दृष्टि से वर्णन किया है और उसका विवेचन उत्तर की ओर से प्रारंभ होता है। मत्स्यपुराण, वायुपुराण और ब्रह्मांडपुराण में यह भी बतलाया गया है कि किन किन वंशों ने कितने कितने दिनों तक राज्य किया था। (१) आंध (अधीनस्थ आंध) और (२) श्री-पार्वतीय राजवंशों के संबंध में मत्स्यपुराण की अधिकांश हस्त-लिखित प्रतियों में यह पाठ मिलता है- आंध्राः श्रीपार्वतीयाश्च ते द्वे पंच शतं समाः' 1 १. पारजिटर कृत Purana Text, पृ. ४६, टिप्पणी ३२ ।