पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ३६७) खुदे हुए अक्षरों में फ्रांसीसी खड़िया ( French Chalk) भरकर बिजली के तीन प्रकाश में उसका चित्र लिया गया था। परंतु अँधेरे में मैं अक्षरों के रूप पूरी तरह से समझ नहीं सका था, इसलिये तीसरा अक्षर पूरी तरह से नहीं भरा जा सका था; और उसका बाईं ओर वाला शोशा ( जो छाप में आ गया है।) छूट गया था। तीसरे अक्षर की दाहिनी तरफ पत्थर का कुछ अंश टूटा हुआ है, जिससे उस स्थान पर एक अक्षर होने का धोखा होता है। पत्थर की सतह कुछ ऊँची होने के कारण यह बात हुई थी। पत्थर पर अंतिम दो अक्षर अँधेरे के कारण मुझसे बिलकुल छूट गए थे। परंतु छाप में वे दोनों अक्षर भी आ गए हैं। आकार दिखलाने के लिये मैं उस समूचे पत्थर का भी फोटो दे रहा हूँ। गाँव वालों ने उस पत्थर पर सफेदी कर दी है और उत्कीर्ण अंश के ऊपर सफेद रंग से कुछ अक्षर भी लिख दिए हैं। इसे आजकल लोग मंगलनाथ ( शिव ) कहते हैं। यह अभिलेख "वाकाटकाना(म् )" पढ़ा जाता है और जान पड़ता है कि इसका संकेत नीचे दिए हुए उसी चक्र की ओर है जो वाकाटकों का राजचिह्न था। सारे लेख का अर्थ होगा-"वाका- टकों का चक्र"। यह स्पष्ट ही है कि यह पत्थर वाकाटकों के राज्य में ही गाड़ा गया था। इसके अक्षर प्रारंभिक वाकाटक काल के हैं। इसका पहला अक्षर "व" पृथ्वीषेण के शिलालेख के "व" से पहले का है। दूसरा अक्षर "का" उसी प्रकार का है, जिस प्रकार का पृथिवीषेण के शिलालेख की उस छाप में है जो जनरल कनिंघम ने अपने प्लेट १. देखो प्लेट ५ ।