( ३६ ) चित्र है जो वीरसेन या महासेन देवता का वाहन है। पद्मावती के माग राजाओं के सिक्कों में से यह सबसे प्रारंभिक काल का सिका है ( ६ २७ )। तौल, आकार और चिह्न आदि के विचार से भी ये सब सिके हिंदू सिक्कों के ही ढंग के हैं। यही बात हम दूसरे ढंग से यों कह सकते हैं कि वीरसेन ने कुशनों के ढंग के सिक्कों का परित्याग करके हिंदू ढंग के सिक्के बनवाए थे। फर्रुखाबाद जिले की तिरवा तहसील के जानखट नामक गाँव में सर रिचर्ड बर्न ने छत्तीस वर्ष पहले इस राजा का एक शिलालेख ढूँढ़ निकाला था। मि० पारजि- वीरसेन का शिलालेख टर द्वारा संपादित Epigraphia Indica. खंड ११, पृ०८५ में यह लेख प्रकाशित हुआ है । कई टूटी हुई मूर्तियाँ और नक्काशी किए हुए पत्थर के टुकड़े हैं और यह लेख पत्थर की बनी हुई एक पशु की मूर्ति के सिर और मुँह पर खुदा है । इसमें भी वही राजकीय चिह्न खुदे हैं जो उस सिके में हैं जिसका चित्र प्रो० रैप्सन ने दिया है। उसमें एक वृक्ष का सा आकार बना है जो उन्हीं के सिक्कों पर बने हुए वृक्ष के ढंग का है और इसलिए हम कह सकते हैं कि वह २ J. R. A. S, १६००, पृ० ५५३ । १ इसमें संदेह नहीं कि मूर्तियों आदि के ये टुकड़े भार-शिव कला के नमूने हैं । सौभाग्य से मुझे इनका एक फोटो मिल गया। यह भारत के पुरातत्त्व विभाग द्वारा सन् १६०६ में लिया गया था । देखो यहाँ दिया हुअा प्लेट नं० २ । इस चित्र के लिये मैं पुरातत्त्व विभाग के डाइरेक्टर जनरल राय बहादुर दयाराम साहनी को धन्यवाद देता हूँ। इसमें का स्तंभ मकर तोरण है। इसमें की स्त्री की मूर्ति गंगा की है जो राजकीय चिह्न है।
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