गया था। पुराणों में भार-शिवों को नव - नाग कहा है। पहले विदिशा में जो नाग हुए थे, वे अर्थात् शेष से वंगर तक नाग राजा प्रारंभिक नाग हैं । पर भूतनंदी के समय से, जब कि नाम के अंत में नंदी (वृष) शब्द लगने लगा तब अथवा जब सन् १५०-१७० ई० के लगभग उनका फिर से उत्थान हुआ; तब से वे लोग निश्चित रूप से भार शिव कहलाने लगे। राजा नव और उसके उत्तराधि- कारियों के सिक्कों में नागों के आरंभिक सिक्कों से मुख्य अंतर यही है कि उनमें आरंभिक सिक्कों का दात शब्द नहीं पाया जाता और उसके स्थान पर नाग शब्द का प्रयोग मिलता है। भागवत में नव नागों का उल्लेख नहीं है और केवल भूतनंदी से प्रवीरक तक का ही वर्णन है । अतः भागवत के कर्ता के अनु- सार भूतनंदी के वंश और प्रवीरक के शासन में ही नव नागों का अंतर्भाव हो जाता है। प्रबीर प्रवरसेन वास्तव में शिशु रुद्रसेन का संरक्षक या अभिभावक था और दूसरे पुराणों के अनुसार ये दोनों मिलकर शासन करते थे। विष्णु पुराण में, जिसके कर्ता के पास कुछ ऐसी सामग्री थी जिसका उपयोग और लोगों ने नहीं किया था, राजधानियों का क्रम इस प्रकार दिया है-पद्मावती, कांतिपुरी और मथुरा । संभवतः इसका अर्थ यही है कि नागों की राजधानी पहले पद्मावती में थी; फिर वहाँ से उठकर कांतिपुरी और वहाँ से मथुरा गई। आज-कल इस विषय में जो बातें ज्ञात हैं, उनसे भी इस मत का समर्थन होता है। भूतनंदी के वंशज राजा शिवनंदी के समय तक और उसके बाद प्रायः आधी शताब्दी तक राजधानी पद्मावती में रही। इसके उपरांत पद्मावती कुशन क्षत्रपों की राजधानी हो गई ($$ ३३, ३४)। कुशन साम्राज्य के अंतिम काल में, अर्थात् सन् १५० ई० के लगभग, भार-शिव लोग गंगा नदी के तट पर कांतिपुरी में पहुँचे । काशी में या उसके
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