( ७२ ) तंत्री समाज थे। जान पड़ता है कि यह नाग वंश अपने निकट- तम पड़ोसी मालवों के ही संबंधी थे जो मालव करकोट नाग की पूजा करते थे, करकोट नाग के उपासक थे और पंजाब में चलकर राजपूताने में आ बसे थे। (देखो आगे इस ग्रंथ का तीसरा भाग ($$ १४५-६) ६३१ क. नंदी नाग जब कुशन काल में सन् ८० ई० के लगभग पद्मावती और विदिशा का रहना छोड़ा था, तब वे लोग वहाँ से मध्यप्रदेश में चले गए और वहीं सन् ८० से १४० ई. के पहाड़ों में रक्षित रहकर वे लोग तक नागों के शरण लेने पचास वर्ष से अधिक समय तक राज्य करते रहे। इस बात का एक निश्चित प्रमाण है कि मध्य प्रदेश के नागपुर जिले पर उनका अधिकार था। राष्ट्रकूट राजा कृष्णराज द्वितीय के जो देवलीवाले ताम्रलेख ( E. I. खंड ५, पृ० १८८) मध्य प्रदेश की आधुनिक राजधानी नागपुर से कुछ ही मीलों की दूरी पर पाए गए थे और जिन पर शक संवत् ८५२ (सन् ९४०-४१ ई.) अंकित है, उनमें कहा गया है कि दान की हुई भूमि नागपुर- नंदिवर्द्धन के प्रदेश में है और इन दोनों ही नामों का नंदी नागों से संबंध है। इस लेख से बहुत पहले का भी हमें नंदिबर्द्धन का उल्लेख मिलता है, अर्थात् उन वाकाटकों के समय का उल्लेख मिलता है जो भार-शिव नागों के बाद ही साम्राज्य के उत्तरा- धिकारी हुए थे। प्रभावती गुप्त के पूनावाले ताम्रलेखों में, जिनका संपादन E.I. खंड १५, पृ० ३६ में हुआ है, नंदिवर्द्धन नगर का का स्थान १. देखो मेरा लिखा हुआ 'हिंदू राज्यतंत्र' पहला भाग, पृ० २५७ और महाभारत सभापर्व श्र० ३२, श्लोक ७-६ ।
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