पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१९

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क्या प्रसRI ___का मन्त्री पररुचि हुया ! यदि पर लिखी हुई पुराणों की गणना सही है, तो कहता होगा कि अत्यन के पीछ २०० वर्ष के बाद, पररुचि हुए। क्योंकि पुराणों के अनुमार ४ शिशुनाग-परा के पौर नवनन्द-वश के राजों का राभ्य-काल इतना ही होता है। महापश और जैनों के अनुसार कालाशोफ के याद पेषल नवनद का नाम आता है । कालाशोक पुराणा का महापच नन्द है। बौखों के लेखानुसार इन शिशुनाग या नन्छों का मपूर्ण राज्य काल १०० पर्प मे कुषही अधिक होता है। यदि इसे माना जाय, तो उदयन के १००-१२५ वर्प पीछे पररुचि का होना प्रमाणित होगा। कथा-सरित्सागर में इसी का नाम 'कात्यायन' भी है-"नाम्ना पररुपि किंव-फास्यायन इति भुस ।" उन विवरणों से प्रवीत हावा है कि वररुधि पद्यन के १२५-२०८न्यप वाव हुए। विम्यात उदयन की फोरमी वररुषि की जन्म भूमि है। . , - मूज-वृहत्कथा इसी पररुधि ने फाणमूति से कही, और कारण भूति ने गुणान्य से । इसस व्यक होता है कि यह फया पररुपि के मस्तिप्फ का माविष्कार है, जो समयत उसने सक्षिा सा से मस्कत में कही थी। क्योंकि उययन की कथा उमकी जन्म भूमि में किम्बदन्तिया के रूप में प्रपलिस रही होगी। सी मूल उपाख्यान को क्रमश काणभूवि और गुणात्य ने प्रारुत और पैशाधी भाषाओं में विस्तार पूर्वक लिखा। महाकवि क्षेमेंद्र ने उसे पुछकिया-मजरो नाम से, मचिप्त सर से, सस्तव में लिस्था । फिर काश्मीर-गज अनवदेव के राम्य-काल में फया सरित्सागर की रचना की। इस पाख्यान को भारतीयों ने यहत भादर दिया। क्योंकि वत्सराज पदमन का नोटको भोर उपास्यानों में नायक - बनाए गए है। स्वप्नवासवदता प्रतिज्ञा-योगधरायण और रत्नावली में इन्हीं का वर्णन है।हर्षचरित में लिखा है-"नागवन