पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अजातशत्रु . अङ्क पहिला दृश्यपाहिला .. स्थान प्रकोष्ठ । (सनमार प्रमातशत्र, परावती, समुदरत और शिकारी'नुम्पक) । अमात-श्यों रे लुग्धक ! 'माज तू मृगशावकं नहीं लाया । हमारा प्यारा चित्रक अब फिससे रहेगा।" समुद्र०-"कुमार ! यह वहा' दुष्ट- हो गया है। आज कई दिनों से यह मेरी बात सुनता ही नहीं।" लुम्पक कुमार ! हम तो माघाफारी दाम हैं। आज हम ने जय एफ मृगशावक को पकया तो उमऊ माता ने ऐसी फर।