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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/६५

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मतपदिला। "मनोहर पीन कुचपर स सरम भी वाय अा अचान । । पढाता यह नई सुखना थनाता चित्त को चम्बल || ! सुलो हो एक दो लट जो कपालों पर कहीं काली ।। वहीं फाँसी लटकती प्रेमियों को बाँधन पाली ।।/ मागन्धी-सकर )"अच्छा अच्छा रहने दे और मव उप मम ठीक रहे, समझी । कोई वस्तु अस्त व्यस्स न रहे । अप्रसन्नता की कोई बात न होने पावे ? उस दिन जो कहा है वह भी ठीक रहे ।। नवीना-"अह भी भापके फहने पर है । मैं सब अभी ठीक किये देती हैं।" (जातो) (पक पोर सायम का प्रवेश, सरी भोर से मतक्मिों का प्रवेश। सब नाचती है और मागरपो सयम काय पफा कर पठाती है।) (मत्तकियों का गान) प्यार निमोहा होकर मत हमका भूलना र । प्पाला प्रेम समत रिलाया मर हर को पाप जिमाया। __ गले लगाया, पेंग वढामा, झमना र-11 प्यार० ॥ परसा सदा दयाजाल शीतल मिच इमाग हदय मरुस्पन भरे फटीले फल, इमीमें फलना र । प्यार निर्मोही हाफर मत हमको मनना र पा०|| (मतकी माती है) - मानन्धी-'आर्यपुत्र ! क्या की दिनों तक मग ध्यान भी नभाया ? क्या मुझ से कोई अपराध हुआ था ?" २५