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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/८३

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मह पहिला। सुम्हारी शपम माँ ! पाशीर्वाद दो कि हम इस फर परीक्षा में सच्चीर्ण हो।" ___ गनी-(सिर पर हाथ फेर कर.) “मेरे घच्चे ऐसा ही हो।" (दोमा माते हैं) । दृश्यनववा . in . .* पनायती का प्रकोष्ठ। ____ पद्मावती-(पाप हो पाप) “यह सौभाग्य ही है कि भगवान् गौतम आगये हैं। अन्यथा पिता की दुरवस्था सोचते सोचते सो मेरी पुरी हालत होगई थी। महाममण की अमोघ सान्त्वना मुझे धैर्य पेसी है। किन्तु मैं यह क्या सुन रही हूँ म्यामी मुझमे असन्तुष्ट है। मला यह वेदना मुझमे पैसे मही नायगी । कई वार दामी गई फिन्तु यहाँ स्रोवेवर ही ऐसी है कि किसी को प्रार्थना, अनुनय, और विनय करने का साहस ही नहीं होता। फिर-मी कोई चिन्ता, नहीं, राजमत प्रजा को विद्रोही होने का भय ही क्यों हो ?-- - . इमारा प्रेम । पन्धनाच्या मरल है, .. पंधा है मापना निषि सातरल के . ४३