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तुम और मैं

 

भुकता है सर,
दुनिया से मैं घोखा खाकर
गिरता हूँ जब,
मुझे उठा लेते हो तुम तब
ज्यों पानी को किरन, तपाकर ।
फिर दुनिया की आँखों से मुझको ओझल कर
रखते आसमान पर,
बादल मुझे बनाते
रंग किरनों से भरते हो सुन्दर;
मुझे उड़ाते रहते हो फिर हवा-दवा पर;
तर सागर--वन
नदी आद्र घन