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पृष्ठ:अणिमा.djvu/३२

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विजय तुम्हारी, लिये हृदय में लान्छन सुन्दर
अस्त हो गया कीर्ति तुम्हारी गा अविनश्वर।

हे चतुरङ्ग, तुम्हारी विजयध्वजा धारणकर
खड़े सुमित्रानन्दन, देवी, मोहन, दिनकर,
माखनलाल, नवीन, भगवती, चन्द्र, पारसी,
कमल, प्रभात, सुभद्रा, अञ्चल, अशेयशशी
कितने रवि, केसरी, कुमार, नरेन्द्र, रमा, ये
रामविलास, प्रदीप, जानकीवल्लभ जागे,
भिन्न रूप-रँग के, पर एक लक्ष्य के सक्षम
कितने और तुम्हारी करते पूर्ति मनोरम
गद्य-पद्य की, प्रतिभा को, साहित्य-समर की,
सुमन, विनोद, उग्र, पाठक, बेढव बनारसी,
नन्ददुलारे, चन्द्र प्रकाश कुवँर, शिवमङ्गल,
इलाचन्द्र, बच्चन, हृदयेश, सुमित्रा, निर्मल
कोकिल, विनयकुमार, श्याम, शाखाल, मन्जु, छवि
नीलकण्ठ, सर्वदानन्द, गिरिजा, गुलाव काव,
शिवपूजन, गङ्गाप्रसाद, बलभद्र, अश्क, श्री