पृष्ठ:अणिमा.djvu/८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७९
 
 

राजा हैं ब्राह्मण, मैं
ब्राह्मण-विद्वेष की कथा उनसे कहूँगा,
उन्हीं के साथ यह श्रेष्ठ राजकर्मचारी
बैठकर जेयेंगे—
देखेंगे हमलोग।"
कहकर वह उठने लगे।
एक दूसरे ने कहा,
"रसगुल्ले आ रहे हैं,
अभी कहाँ जाते हैं?
कटु हुई है जिह्वा, मीठी कर लीजिए।"
वह पश्चिमीय भी बैठा था चुपचाप।
उठने को काँप कर बैठे रहे द्विजदेव।
भोजन अधूरा ही छोड़कर स्वामी जी
उठ कर खड़े हुए।
बढ़ते हुए कहा यह, “होगा हमारा भी कोई
अपना समझदार, समझायेगा वही
ऐसे विद्वानों को।"
द्विज भी खड़े हुए,