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लौटे वैकुण्ठ को,
तेल एक बूँद भी उस पात्र से गिरा नहीं।
उल्लास मन में भरा था
यह सोच कर, तैल का रहस्य एक
अवगत होगा नया।'
नारद को देखकर
विष्णु भगवान ने
बैठाला स्नेह से,
कहा, 'यह उत्तर तुम्हारा यहाँ आ गया।
बतलाओ, पात्र लेकर जाते समय कितने बार
नाम इष्ट का लिया?'
'एक बार भी नहीं',
शङ्कित हृदय से कहा नारद ने विष्णु से,
'काम तुम्हारा ही था,
ध्यान उसी से लगा,
नाम फिर क्या लेता और?'
विष्णु ने कहा, 'नारद',
'उस किसान का भी काम