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पृष्ठ:अणिमा.djvu/९०

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मैनेजर ने कहा,
'यों तो प्रासाद तथा और और दृश्य हैं,
किन्तु व्यर्थ आपके लिए है यह देखना।
स्नान, ध्यान, भोजन, आराम के अनन्तर
सब लोग तैयार हुए
कृष्णजी के दर्शन को,
राजगढ़ के अभ्यन्तर।
स्वामीजी, तीन ब्रह्मचारी, मैनेजर साहब
चले, पश्चिमीय वह युवक भी साथ हुआ।
तीन मील घेर कर गहरी एक नहर सी
परिखा है चारों ओर से गढ़ को डालकर
अपने में वेष्टनी-सी।
पश्चिम में सिंहद्वार,
परिखा के पुल के बाद।
सीधा रास्ता गया। दोनों ओर बड़े बड़े
स्वच्छ जलाशय हैं।
समतल किये हुए
सरोवर-तटोद्यान के। दूब जमाई हुई।