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अतीत-स्मृति
 

हविर्यज्ञ मुख्य करके ७ प्रकार का है। यथा-अग्न्याधेय, अग्निहोत्र, दर्श-पौर्णमास, आग्रहायणी, चातुर्मास, पशुबन्ध और सौत्रामणि।

सोमयज्ञ भी प्रधानतः ७ प्रकार का है। अग्निष्टोम, अत्यग्निष्टोम, उक्थ, षोडशी, वाजपेय, अतिरात्र और आप्तोर्याम। राजसूय और अश्वमेध भी सोमयाग ही में गिने जाते हैं। परन्तु इन्हें ब्राह्मण लोग न करते थे।

सोमयज्ञ के अन्तर्गत भी कई प्रकार के याग हैं। वे चाहे जितने प्रकार के हों, सब की उत्पत्ति अग्निष्टोम ही से है। इसी लिए विशेष विशेष प्रकार का अग्निष्टोम-यज्ञ विशेष विशेष नाम से पुकारा जाता था। सोमरस से साधित होने के कारण लोग उसे सोमयज्ञ कहते हैं।

सोमयाग के भी तीन प्रकार हैं-"आहीन" "सत्र" और "एकाह"। जो एक दिन में पूरा होता है वह "एकाह" है। दो से बारह दिनों में होने वाले का नाम "अहोन" है। एक पक्ष या और अधिक दिनो तक होने से वह "सत्र" कहलाता है। सत्र के भी "दीर्घ सत्र" इत्यादि कई भेद हैं।

अग्निष्टोम-यज्ञ करने का समय इस प्रकार कहा गया है‌। यथा-"वसन्तेऽग्निष्टोमः" (कात्यायन-सूत्र) "वसन्ते ज्योतिष्टोमेन यजेत" (आपस्तम्बसूत्र) अतएव वसन्तकाल ही सोमयाग करने का समय है। वसन्तकाल ही में सोम बहुतायत से पाया जाता है। इसलिए उसी ऋतु में ऋषि सोमयाग करते थे।