कृष्ण-चरित, सप्तम-परिच्छेद (१) आर इहाओ सम्भव, ये तांहार (पाणिनिर) अनेक पूर्वइ महाभारत प्रचलित हइयाछिल। (२) अतएव महाभारतेर युद्धेर अनल्प परेइ आदिम महाभारत प्रणीत हइयाछिल बलियाये प्रसिद्धि आछे। ताहार उच्छेद करिबार कोन कारण देखाय न। (३) अतएव महाभारतेर प्राचीनता सम्बन्धे बड़ गोलयोग करार कहारओ अधिकार नाइ। |
प्रयाग समाचार का भावार्थ और यह भी सिद्ध हो गया कि उनके (पाणिनि के) बहुत पूर्व से महाभारत प्रचलित था। इससे अब सिद्ध हो गया कि महाभारत युद्ध के थोड़े ही पीछे जो आदि महाभारत बना कर शामिल करने का दोष दिया जाता है इसके खण्डन की अब कोई आवश्यकता नहीं। अतएव महाभारत की प्राचीनता में हस्तक्षेप करने का किसी को अधिकार नहीं है। |
यहाँ पर पहले अवतरण में जल्दी या असावधानता के कारण "सम्भव" शब्द का अर्थ "सिद्ध हो गया" कर दिया गया। सम्भव और सिद्ध होने में कितना अन्तर है, इसके बतलाने की जरूरत नहीं। दूसरे अवतरण का हिन्दी भावार्थ हमारी समझ में बिल्कुल ही नहीं आया। बँगला वाक्य का मतलब है—"अतएव जो यह प्रसिद्धि है कि महाभारत—युद्ध के कुछ ही पीछे आदिम महाभारत की रचना हुई थी उसके उच्छेद, अर्थात् खण्डन, का कोई कारण नहीं देख पड़ता।" अनुवाद में "महाभारत बना