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१०४ :: अदल-बदल
 

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इस बातचीत के बाद डाक्टर कृष्णगोपाल ने घर आना-जाना और विमलादेवी से मिलना बन्द कर दिया। अवसर पाकर मालतीदेवी ने विमलादेवी से उनके घर जाकर मुलाकात की। दोनों में इस प्रकार बातचीत प्रारम्भ हुई।

मालतीदेवी ने प्रारम्भिक शिष्टाचार के बाद कहा---'मैं आपके पास अप्रिय संदेश लाई हूं विमलादेवी, नहीं जानती---कैसे कहूं।'

'कुछ-कुछ तो मैं समझ ही गई हूं। परन्तु आपको जो कहना है, वह खुलासा कह डालिए।'

'परन्तु आपको दुःख होगा।'

'स्त्री के सुख-दुःख से तो आप परिचित हैं ही मालतीदेवी। आप भी तो स्त्री हैं। स्त्री का सुख-दुःख स्त्री ही ठीक-ठीक जान सकती है, फिर आपको संकोच क्यों?'

'सोचती हूं कैसे कहूं?

'न कहने से दुःख तो टलेगा नहीं।'

'यह तो ठीक है।'

'फिर आपको जो कहना है, कह दीजिए।'

'मैं आपके पति के पास से समझौता करने आई हूं।'

'आप क्यों आई हैं?'

'आपके पति के अनुरोध से।'

'परन्तु अपने पति के साथ कोई समझौता करने के लिए पत्नी को किसी तीसरे व्यक्ति की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। पति-पत्नी तो अपने जीवन के सुख-दुःख के साथी-साझीदार हैं। किसी बात पर यदि उनमें विवाद उठ खड़ा हुआ तो वे आपस में मिलकर ही समझौता कर सकते हैं, किसी मध्यस्थ के द्वारा नहीं।'