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१२०::अदल-बदल
 

बांहों में माया को उठाया और घर के भीतर ले आए। उसे चारपाई पर लिटा दिया।

बालिका ने भय-मिश्रित दृष्टि से मूच्छिता माता को देखा-कुछ समझ न सकी। उसने पिता की तरफ देखा।

'तेरी अम्मा आ गई बिटिया, बीमार है यह।' फिर माया की नाक पर हाथ रखकर देखा, और कहा-उस कोने में दूध रखा है, ला तो ज़रा।

दूध के दो-चार चम्मच कण्ठ में उतरने पर माया ने आंखें खोलीं। एक बार उसने आंखें फाड़कर घर को देखा, पति को देखा, पुत्री को देखा, और वह चीख मारकर फिर बेहोश हो गई।

मास्टरजी ने नब्ज देखी, कम्बल उसके ऊपर डाला । ध्यान से देखा, शरीर सूखकर कांटा हो गया है, चेहरे पर लाल-काले बड़े-बड़े दाग हैं, आंखें गढ़े में धंस गई हैं। आधे बाल सफेद हो गए हैं। पैर कीचड़ और गन्दगी में लथपथ और और और वे दोनों हाथों से माथा पकड़कर बैठ गए।

प्रभा ने भयभीत होकर कहा-'क्या हुआ बाबूजी ?'

'कुछ नहीं बिटिया !' उन्होंने एक गहरी सांस ली। माया को अच्छी तरह कम्बल उढ़ा दिया।

इसी बीच माया ने फिर आंखें खोली। होश में आते ही वह उठने लगी। मास्टरजी ने बाधा देकर कहा-'उठो मत, प्रभा की मां, बहुत कमजोर हो । क्या थोड़ा दूध दूं?'

माया जोर-जोर से रोने लगी। रोते-रोते हिचकियां बंध गईं।

मास्टरजी ने घबराकर कहा-'यह क्या नादानी है, सब ठीक हो जाएगा। सब ठीक...।'

'पर मैं जाऊंगी, ठहर नहीं सकती।'