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पृष्ठ:अदल-बदल.djvu/१२३

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मरम्मत::१२५
 

पर अस्तव्यस्त पड़ी थी, चिकने और चूंघर वाले बाल चांदी के समान मस्तक पर बिखर रहे थे। बड़ी-बड़ी आंखें भरपूर नींद का सुख लूटकर लाल हो रही थीं। गुस्से से उसके होंठ सम्पुटित हो गए थे, भौंहों में बल थे, वह पलंग पर औंधी पड़ी थी। एक मासिक पत्रिका उसके हाथ में थी। वह तकिये पर छाती रक्खे अनमने भाव से उसके पन्ने उलट रही थी।

रजनी की मां का नाम सुनन्दा था। खूब मोटी ताजी, गुद-गुदी ठिगनी स्त्री थीं। जब वे फुर्ती से काम करतीं तो उनका गेंद की तरह लुढ़कता शरीर एक अजब बहार दिखाता था। वह एक सुगृहिणी थीं, दिनभर काम में लगी रहती थीं। उनके हाथ बेसन में भरे थे और पल्ला धरती में लटक रहा था। उन्होंने जल्दी-जल्दी आकर कहा- 'वाह री रानी, बेटी तेरे ढंग तो खूब हैं। भैया घर में आ रहे हैं, दस काम अटके पड़े हैं और रानीजी पलंग पर पड़ी किताब पढ़ रहीं हैं। उठो ज़रा, रमिया हरामजादी आज अभी तक नहीं आई। जरा गुसलखाने में धोती,गमछा, साबुन सब सामान ठिकाने से रख दो-भैया आकर स्नान करेंगे। उठ तो बेटी! अरी, पराये घर तेरी कैसे पटेगी !'

रजनी ने सुनकर भी मां की बात नहीं सुनी, वह उसी भांति चुपचाप पड़ी रही। गृहिणी जाती-जाती फिर रुक गईं। उन्होंने कहा-'रजनी सुनती नहीं, मैं क्या कह रही हूं। भैया।•••।'

रजनी गरज उठी—'भैयाजब देखो, भैया, भैया आ रहे हैं तो मैं क्या करूं? छत से कूद पडूं ? या पागल होकर बाल नोच डालूं ? भैया आ रहे हैं या गांव में शेर घुस आया है ? घरभर ने जैसे धतूरा खा लिया हो। भैया आते हैं तो आएं ! इतनी आफत क्यों मचा रखी है ?

क्षणभर को गृहिणी अवाक् हो रहीं, उन्होंने सोचा भी न था कि रजनी भैया के प्रति इतना विद्रोह रखती है। भैया तो हर