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१५४ :: अदल-बदल
 


हैरान थे कि कुमुद ने भोजन के समय न उसकी चर्चा की, न हंसी। उन्हें बहुत आशा थी कि उसकी बात सुनेंगे। वह, अखबार लिए आरामकुर्सी पर देर तक पड़े-पड़े ऊंघने लगे। झपकी लगते ही देखा, वही आफत उसी भांति झपटकर उनके सामने आ खड़ी हुई। वह हडबड़ाकर उठ बैठे, मानो उसे पकड़ लेंगे। पर खड़े होकर, आंख खोलकर देखा, कुमुद दूध का गिलास लिए खड़ी थी। वह खूब गम्भीर बनी खड़ी थी। उसे सामने देख राजेश्वर अपनी बेवकुफी पर झेंप गए। वह चुपचाप कुर्सी पर बैठ गए। फिर बेवकूफ की भांति हंसकर बोले--'मुझे नींद आ गई?'

'जी हां, उसी में कुछ सपना देखकर शायद हडबड़ाकर उठ पड़े, पर सामने कोई और ही खड़ा मिला। लीजिए, दूध पी लीजिए, और फिर आराम से रातभर सपने देखिए।' कुमुद ने अब भी अपनी गम्भीरता भंग न की।

राजेश्वर सोच ही न सके, क्या जवाब दें। वह चुपचाप दूध पीने लगे। कुमुद उन्हें एक पान देकर चली गई, तो राजेश्वर ने उसका हाथ पकड़कर कहा--'भागती कहां हो, अपनी उस नई सखी का सब हाल सुनाओ।'

'जी, उसकी बात न कीजिए।'

'नहीं नहीं, बताओ तो, तुमने क्या समझकर उसे वहां भेजा था?'

'जी नहीं श्रीमान् जी, उसकी बात करने का मुझे हुक्म नहीं है।'

राजेश्वर ने कुमुद को खींचकर कुर्सी पर गिरा दिया, और दोनों हाथों से गला दबाकर कहा--'बोलो, नहीं तो गला घोंट दूंगा।'

'घोंट दीजिए श्रीमान् जी, पर एक सांस ले लेने दें।'

'अच्छा, लो एक सांस।'