अत्याचार न कर पाओगी, यह अंग्रेजी राज्य है, समझीं?'
'समझी, और आप हैं एक नामी-गिरामी वकील, परन्तु यहां कच्चे मुवक्किल नहीं। वकालत रहने दीजिए, धेला भी नहीं मिलेगा।'
राजेश्वर उठकर हंसते हुए बैठ गए। किशोरी ने लजाते हुए हाथ जोड़कर प्रणाम किया। राजेश्वर ने उसे आंख भरकर देखना चाहा, पर न देख सके। वह दूसरी ओर मुंह करके हंसने लगे।
कुमुद ने कहा--'अब आप खिसकिए। वहां मुवक्किल लोग बैठे हैं, मुन्शी कई बार आ चुका है।'
'किशोरी ने धीरे से कहा--'जीजी, उन्हें घर से क्यों भगाती हो?
कुमुद ने कहा--'यह वकीलों की वकालत होने लगी।'
राजेश्वर ने अब एक बार किशोरी को भली भांति देखा, वह लजाकर सिकुड़ गई।
राजेश्वर ने बातचीत का बहुत कुछ आयोजन किया, पर उन्हें कहने योग्य कोई बात ही न सूझ पड़ी। वह उठकर चलने लगे।
कुमुद ने इसी बीच उठते-उठते कहा--'आपके लिए नाश्ता लाती हूं। कुमुद उठ गई। किशोरी ने उठकर कुमुद के साथ जाना चाहा, पर वह उठ भी न सकी, और बैठना भी उसके लिए भार हो गया। फिर भी वह चुपचाप धरती पर बैठी रही। बहुत चेष्टा करने पर भी राजेश्वर उससे एक शब्द भी न कह सके, उसकी ओर देख न सके।
कुमुद दो तश्तरियों में नाश्ता सजा लाई। एक तश्तरी पति के आगे रखकर दूसरी किशोरी के आगे रख दी और मुस्कराकर उसे खाने का अनुरोध किया।