अब रही अन्तिम बात। वह यह कि पति मर्यादा से बाहर मौज-बहार करता है, तथा पत्नी को घर में कैदी बनाकर डाल दिया है। वह नौकर-चाकरों में दिन काटती है। मैं तसलीम करता हूं कि पुरुष ऐसे आवारागर्द हो जाते हैं और उनके लिए स्त्रियों को दृढ़तापूर्वक मुकाबले को तैयार हो जाना चाहिए। जिस प्रकार जमीन-जायदाद पर अधिकार पाने के लिए लोग खूब लड़ते हैं, स्त्रियों को भी खूब लड़ना चाहिए। पर 'पर-घर' तो नहीं कहना चाहिए। जो स्त्री 'पति-घर' को 'पर-घर' कहेगी, वह लड़ेगी किस अधिकार से? प्रथम उसे 'अपना घर' 'अपना पति' बनाना, पीछे यदि अनाचार दीखे तो युद्ध ठान देना। पर प्रश्न यह है कि---प्रथम उसे अपना लेना---यह स्त्री जाति के लिए बड़ी भारी तपस्या है। प्रायः पढ़ी-लिखी स्त्रियां ऐसा नहीं कर सकतीं। वे न पति की सेवा करती हैं, न बच्चों की। पति को वश में करने के लिए वे केवल शृंगार-पिटार काफी समझती हैं और बच्चों को नौकरों के सुपुर्द करना। बहुधा ऐसी ही स्त्रियों के पति आवारागर्द होते हैं। वास्तव में पत्नी का सबसे बड़ा गुण विनय और सेवा है। पुरुष तो क्या, हिंसक जन्तु भी उससे वश में होते हैं। महर्षि वात्स्यायन ने अपने कामसूत्र में पत्नी के गुण इस भांति लिखे हैं---
पति को देव-समान आदरणीय समझे, उसकी सम्पति से परिवार और गृहस्थ का संचालन करे, सदा पवित्र वेश धारण करे। घर को फुलवारी और विविध वस्तुओं से सजाए, परिजन, अतिथि, पति के मित्र आदि का यथावत् सत्कार करे, घर के आंगन में तरकारी बो दे, फल के वृक्ष लगाए, फलों का सदुपयोग करे। ऋतु, देश, काल और घर के मनुष्यों की मरजी के अनुकूल भांति-भांति के स्वादिष्ट भोजन बनाए। पति को बाहर से आया जान, प्रेम और आदर से घर में सत्कार करे। सेवकों और दासियों के रहते भी स्वयं पति की सेवा करे। पिता के घर या सम्बन्धियों