'क्यों?'
कुमुद के प्रश्न का लहजा देखकर वकील साहब जरा सिट पिटाए। पर फिर उन्होंने हंसकर कहा--'मेरा क्या कसूर है, वह क्यों आई थी मेरे पास?'
'क्या आप समझते हैं कि वह इसीलिए आई थी?'
'इसीलिए आई होगी।' राजेश्वर पत्नी की आंखों से दृष्टि न मिला सके, वह इधर-उधर देखने लगे। चाह कर भी वह हंस न सके।
कुमुद ने अपने वस्त्र से पिस्तौल निकालकर धीरे से उसका घोड़ा दबाया। यह देख राजेश्वर का रोम-रोम कांप गया। वह कुर्सी से उछलकर खड़े हुए। उन्होंने चीखकर कहा--'यह क्या? क्या तुम मुझे गोली मारोगी?'
'अभी नहीं, मैं यह देख तो लूं, कसूर किसका था। जिसका कसूर होगा उसे ही गोली मारी जाएगी। हां श्रीमान् जी, कहिए, वह क्या इसीलिए आई थी?'
'मैं कैसे कह सकता हूं।'
'तब आपने यह कहा कैसे?'
राजेश्वर कुछ भी जवाब न दे सके। वह इधर-उधर ताकने लगे।
कुमुद ने खड़े होकर कहा--'बैठ जाइए श्रीमान्, आप ठीक-ठीक बताइए कि वह क्यों आई थी?'
'यह मैं नहीं जानता।'
'आप अवश्य जानते हैं।'
'मैं नहीं जानता।' उन्होंने क्रोध के स्वर में कहा।
'आप क्या इस समय क्रोध भी करने की हैसियत रखते हैं? कहिए, वह क्यों आई थी, सत्य कहिए, आप मेरे पति हैं, मैंने आपको देवता समझा है।'