और उदास हो रहा था। इधर दिन-दिनभर जो उनकी पत्नी मायादेवी घर से गायब रहने लगी थी। यह उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। उनके समुद्र के समान शान्त और गम्भीर हृदय में भी तूफान के लक्षण प्रकट हो रहे थे। फिर भी पिता-पुत्री प्रेम से बातचीत कर रहे थे।
प्रभा ने कहा-'पिताजी आज आप मुझे कमरे में टंगी तस्वीरों में इन महापुरुषों को महिमा समझाइए।'
मास्टर ने प्रेम की दृष्टि से पुत्री की ओर देखा और फिर दीवार पर लगी बुद्ध की बड़ी-सी तस्वीर की ओर उंगली उठाकर कहा-'यह हैं भगवान बुद्ध, जिन्होंने राज-सुख त्याग कठोर संयम व्रत लिया, और विश्व को अहिंसा का संदेश दिया। उन्होंने मूक प्राणियों की ऐसी भलाई की कि आधी दुनिया इनके चरणों में झुक गई।'
फिर उन्होंने शंकराचार्य की मूर्ति की ओर संकेत करके कहा-'ये शंकर हैं, जिन्होंने ब्रह्म-पद पाया, संसार को मायाजाल से छुड़ाया, थोड़ी ही अवस्था में इन्होंने उत्तर से दक्षिण तक नये हिन्दू धर्म की स्थापना की।
मास्टर बड़ी देर तक उस मूर्ति की ओर एक टक देखते रहे, फिर उन्होंने प्रताप, शिवाजी की ओर संकेत करके कहा-'ये वीरशिरोमणि प्रताप हैं, जिन्होंने पच्चीस वर्ष वन में दुःख पाए पर शत्रु को सिर नहीं झुकाया। ये शिवाजी हैं जिन्होंने हिन्दुओं की मर्यादा रक्खी, इन्होंने ऐसी तलवार चलाई कि दक्षिण में इनकी दुहाई फिर गई।' अन्त में उन्होंने स्वामी दयानन्द की ओर देखकर कहा-'ये स्वामी दयानन्द हैं, जिन्होंने वेदों का उद्धार किया, सोते हुए हिन्दू धर्म को, सत्य का शंख फूंककर जगा दिया।'
फिर मास्टरजी ने गांधीजी के चित्र की ओर उंगली उठाकर कहा-'और ये...' ,