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५६::अदल-बदल
 

यौवन का ग्राहक है। स्त्रियों का यौवन ढलने पर उन्हें कोई नहीं पूछता। अब तक हमारे गृहस्थ की यह परिपाटी थी कि स्त्री की उम्र बढ़ती जाती थी, वह पत्नी के बाद मां, मां के बाद दादी बनती जाती थी, इसमें उसका मान-रुतबा बढ़ता ही जाता था। अब पुरुष तो पुरानी औरतों को तलाक देकर, नई नवेलियों से नया व्याह रचाएंगे। स्त्रियां भी, जब तक उनका रूप-यौवन है, नये-नये पंछी फसाएंगी। पर रूप-यौवन ढलने पर वे असहाय और अप्रतिष्ठित हो जाएंगी। उनकी बड़ी अधोगति होगी।'

सेठजी विचार में पड़ गए। बोले-'इस मसले पर तो हमने कोई विचार ही नहीं किया। क्या कहती हो मायादेवी ?'

'मैं तो आप लोगों को हिमाकत को देख रही हूं। क्या दकि- यानूसी मनहूस बहस शुरू की है। शाम का मजा किरकिरा कर दिया। जाइए आप, अपनी औरतों को बांधकर रखिए। मैं तो अन्याय को दाद न दूंगी। मैं स्त्री की आजादी के लिए पुरुषों से लड़गी, डटकर।"

'और श्रीमती मायादेवी, यह बन्दा इस नेक काम में जी-जान से आपकी मदद करेगा।' डाक्टर ने लबालब शराब से भरा गिलास मायादेवी की ओर बढ़ाते हुए कहा-'लीजिए, हलक तर कीजिए इसी बात पर।'

'शुक्रिया, पर मैं ज्यादा शौक नहीं करती। हां कहिए, श्रीमती विमलादेवी कैसी हैं । आजकल उनसे कैसी पट रही है ?'

'कुछ न पूछो-मुझे तो उसकी सूरत से नफरत है। जब देखो, मनहूस सूरत लिए मिनमिनाती रहती है।'

'तो हजरत, कभी-कभी यहां सोसाइटी ही में लाइए। तरीके सिखाइए। बातें आप बड़ी-बड़ी बनाते हैं मगर करनी कुछ नहीं। मैं कहती हूं-जो कहते हैं उस पर अमल कीजिए।'

'करूंगा, जरूर करूंगा मायादेवी, बस आप जरा मेरी पीठ ,