'तुम क्या डाक्टर हो, और तुम्हें मालूम क्योंकर होगा, मैं जब तक मर न जाऊं, तुम्हें मेरी बीमारी का विश्वास क्यों आने लगा।
'तो तुम चाहती क्या हो, डाक्टर बुला लाऊं?'
'डाक्टर क्या चाहने से बुलाया जाता है ? फिर तुम डाक्टर को बुलाओगे क्यों ? रुपया जो खर्च हो जाएगा।'
मास्टर ने क्षणभर सोचा। फिर धीरे से कहा-'जाता हूं,डाक्टर बुला लाता हूं।'
माया ने कहा-'कौनसा डाक्टर लाओगे?'
'किसे लाऊं?
'उस मुहल्ले के डाक्टर का क्या नाम है, परसों पड़ोस में आया था। एक दिन की दवा में आराम हो गया। उसीको बुलाओ!'
मास्टर जाकर कृष्णगोपाल को बुला लाए। डाक्टर ने मायादेवी की भली भांति जांच को। दिल देखा, नब्ज देखी, जबान देखी, पीठ उंगली से ठोकी, आंखें देखी और कुछ गहरे सोच में गुम-सुम बैठ गए।
मास्टर ने शंकित दृष्टि से डाक्टर को देखकर कहा-'डाक्टर साहब, क्या हालत है ?
डाक्टर ने मास्टर को एक तरफ ले जाकर कहा-'अभी कुछ नहीं कह सकता। बुखार तो नहीं है, मगर हथेली और तलुओं में जितनी गर्मी होनी चाहिए उतनी नहीं है, आंखों का रंग हर पल में बदलता है, ओठ सूख गए हैं, नाड़ी की चाल बहुत खराब तो नहीं है, परन्तु अनियमित है, उधर दिल की धड़कन...' डाक्टर एकाएक चुप हो गए। जैसे वे किसी गम्भीर समस्या को हल कर रहे हों।
मास्टर साहब ने घबराकर कहा-'कहिए, कहिए, दिल की