३. पति और पत्नी का आध्यात्मिक अविच्छिन्न जन्म-जन्मान्तरों का सम्बन्ध।
'इन्हीं मर्यादाओं पर हिन्दू-विवाह विधि निर्भर थी। आप अच्छी तरह समझ सकते हैं, कि ये सारे ही आधार आध्यात्मिक हैं, और उनका आजकल के भौतिक जीवन से मेल नहीं खाता था। इसीसे यह आवश्यकता पड़ी। सहस्रों वर्षों के बाद अब पति-पत्नी के संबंधों का नया अध्याय शुरू हुआ है, जो दोनों को समान अधिकार देता है। अब तक तो स्त्री पति की गुलाम थी, सम्पत्ति थी, दौलत थी, जिंदा दौलत!'
'अंधेर करते हैं आप, जिंदा दौलत कैसे? हम लोग तो स्त्रियों को वह मालिकाना अधिकार देते हैं कि घर-बार सबकी मालि- किन उसीको बना देते हैं।'
वकील साहब हंसकर बोले---'किंतु उसी प्रकार, जैसे बैंक का क्लर्क बैंक के रुपये-पैसे और हिसाब-किताब का मालिक रहता है। जनाब, आप इस बात पर चौंकते हैं कि मैंने कह दिया कि स्त्री को आप दौलत समझते हैं। आप क्या उन्हें 'स्त्री रत्न' नहीं कहते? क्या आपके धर्मराज युधिष्ठिर ने अपनी पत्नी द्रौपदी को जुए के दांव पर नहीं लगा दिया था। सत्यवादी हरिश्चन्द्र ने अपनी स्त्री को कर्जा चुकाने के लिए भेड़-बकरी की भांति बीच बाजार में नहीं बेच दिया था?
वकील साहब खूब जोश में जा रहे थे, परंतु मालतीदेवी ने उन्हें बीच ही में रोककर कहा---'कृपया मतलब की बात पर आइए। अभी बहस रहने दीजिए।'
वकील साहब ने कहा---
'अच्छी बात है। मैं तो पहले ही कह चुका हूं कि कानून आपके हक में है और मैं आपकी सेवा में उपस्थित हूं। केवल फीस का सवाल है, सो आपने हल ही कर दिया। यह भी सम्भव है कि