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अंतःसक्षित्व-विद्या


'थियाँसफ़िस्ट' नामक सामयिक पुस्तक के नियमित पढ़नेवाले हैं, जिन्होंने कंबरलैंड साहब के दिखलाए हुए अंतःसाक्षित्व-विद्या-संबंधी चमत्कारों का वर्णन पढ़ा है, जिन्होंने अमेरिका के डाक्टर डाइस के अलौकिक कृत्यों का समाचार सुना है, वे जान सकते हैं, वे कह सकते हैं, वे विश्वास कर सकते हैं कि इस भूमंडल से अंतर्ज्ञान-विद्या का विलकुल ही लोप नहीं हो गया, अब भी उसके विद्यमान होने के प्रमाण कहीं-कहीं मिलते हैं। परंतु हाँ, बहुत विरल मिलते हैं।

इस समय हिंदोस्तान में भी इल्म-ग़ैब का जाननेवाला एक प्रसिद्ध पुरुष है। उसकी अंतर्ज्ञान-विद्या बहुत बढ़ी-चढ़ी है। १८९२ ई० में यह पुरुष जीवित था। मालूम नहीं, अब वह है या नहीं। उस समय उसकी उम्र सिर्फ़ ३५ वर्ष की थी। इससे कह सकते हैं कि वह बहुत करके अब तक ज़िंदा होगा। अस्तु हम उसे जिंदा ही समझकर उसके विषय में दो-चार बातें लिखते हैं।

इस पुरुष का नाम गोविंद चेट्टी है। वह मदरास-हाते के कुंभकोण-नगर से ६ मील पर वलिंगमन-नामक गाँव में रहता है। कुंभकोण साउथ इंडियन रेलवे का एक स्टेशन है। गोविंद चेट्टी की मातृभाषा तामील है। वह संस्कृत भी थोड़ी जानता है। उस प्रांत में उसका बड़ा नाम है। वह भूत, भविष्य और वर्तमान को सामने रक्खा हुआ देखता है। अर्थात् वह त्रिकालज्ञ है। एक बार उसके विषय में 'थियोसफिस्ट' में एक लेख छपा था।