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अद्भुत आलाप


दिखलाई गईं। उन्हें भी उसकी खी ने सही-सही लिख दिया। इसके बाद मैंने अपनी जेब से एक बहुत पुराना नोट निकाला। जब मैं 'हालोवे'-जेल से छूटा था, तब यह नोट मुझे एक लेडी ने दिया था। तब से मैं इसे हमेशा अपनी पॉकेट में ही रखता आया हूँ। पुराना होने के कारण यह बहुत मैला हो गया है। इसके नंबर वग़ैरह मुश्किल से पढ़े जाते हैं। इसे मैंने ज़ानसिग के हाथ में दिया। उसने अपनी स्त्री से पुकारकर पूछा--"यह क्या चीज़ है?" इस बात को न भूलिएगा कि स्त्री दूसरे कमरे में थी। कमरे के बीच में पर्दा पड़ा था। स्त्री ने जवाब दिया-"नोट है।" इसकी तारीख? जवाब मिला--'३ जुलाई, १८८५ ।" और नंबर? स्त्री ने कहा--"पहले ५ है, फिर ९, फिर ८, फिर ४ ।" पर्दा उठाकर जो उसकी स्लेट देखी गई, तो उस पर लिखा था--५९८४। ये सब बातें बिलकुल सही थीं। इसके पहले ही ज़ानसिग को स्त्री ने कहा था कि यह नोट आग में झुलस-सा गया है । यह बात भी एक तरह ठीक थी। नोट झुलस तो नहीं गया था, पर २० वर्ष से लगातार पॉकेट में, नोटबुक के भीतर, रहने से उसका रंग बिलकुल ही उड़ गया था, और मालूम होता था कि ज़रूर धुएँ से खराब हो गया है। और भी कई परीक्षाएँ मैंने कीं, और सबमें ज़ानसिग की स्त्री उत्तीर्ण हो गई।

इन सब परीक्षाओं से मेरा संदेह दूर हो गया। मैंने समझ लिया कि परिचित्त-विज्ञान के सिवा और कोई भेद इसमें नहीं।