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मनुष्येतर जीवों का अंतर्ज्ञान

फ़ोन) में भरकर उसकी परीक्षा भी उन्होंने की है[१]। यदि ऐसे ही प्रयत्न होते रहे, तो कोई दिन शायद ऐसा आवेगा, जब ये अथवा और कोई विद्वान् पशु-पक्षियों के साथ बातचीत करने में भी समर्थ होंगे। इस देश के पुराणादिक में पशु-पक्षियों की शब्द-ज्ञान-संबंधिनी बातों का कहीं-कहीं उल्लेख पाया जाता है। पंच-पक्षी इत्यादि पुस्तकें भी, कुछ-कुछ, इसी विषय से संबंध रखनेवाली विद्यमान हैं। संभव है, भारतवर्ष के प्राचीन विद्वानों ने मनुष्येतर प्राणियों की भाषा की मर्म जाना हो।

जैसे मनुष्यों में ज्ञान संपादन करने की पाँच इंद्रियाँ हैं, वैसे ही मनुष्येतर जीवों में भी हैं। परंतु दूसरे जीवों की कोई-कोई ज्ञानेंद्रियाँ मनुष्यों की इंद्रियों से प्रबल होती हैं। उदाहरण के लिये गृद्ध की दृष्टि का विचार कीजिए। वह मनुष्यों की अपेक्षा बहुत दूर की वस्तु देख सकता है। बिल्ली की घ्राण-शक्ति भी प्रबल होती है। चाहे जितनी छिपी हुई जगह में ढका हुआ दूध रक्खा हो, वह वहाँ शीघ्र ही पहुँच जाती है। घ्राण की विशेष शक्ति प्रायः सभी पशुओं में देखी जाती है। परंतु इन पाँच इद्रियों के अतिरिक्त, जान पड़ता है, पशुओं में और भी कोई इंद्रिय है। यदि नहीं है, तो क्यों सिकरे के आने के पहले


  1. इन्होंने अपनी जाँच का फल एक ग्रंथ में अब पर्यटक किया है, जिसमें सिद्ध किया है कि बंदरों की भी निज बोली है