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अद्भुत आलाप


ताजमहल की कल्पना करनेवाले में भी ज्ञान था, और घोंसला या गार बनानेवाले जीवों में भी वह है। किसी में कम, किसी में ज्यादा। मकड़ी, चिड़ियाँ, लोमड़ी और चींटी इत्यादि छोटे-छोटे जीव तक अपने-अपने काम से ज्ञान रखने का प्रमाण देते हैं, और ज्ञान मन का व्यापार है। मन से ज्ञान का बहुत बड़ा संबंध है। तो फिर यह कैसे कह सकते हैं कि जानवरों में मान सिक विचार को शक्ति नहीं है?

जो कुछ हम सोचते या करते हैं, वह इंद्रियों पर उठे हुए चित्र का कारण नहीं है। उसका कारण ज्ञान है। एक किताब या कुर्सी की तसवीर मक्खी की इंद्रियों पर भी वैसी ही खिंचेगी, जैसी पालने पर पड़े हुए एक छोटे बालक की इंद्रियों पर। पर जिसमें जितना ज्ञान होता है, जिसमें जितनी बुद्धि होती है, उसी के अनुसार सांसारिक पदार्थों या शक्तियों को ज्ञानगत मूर्तियों का महत्त्व, न्यूनाधिक भाव में, सब कहीं देख पड़ता है। जिस भाव से हम एक किताब को देखेंगे, भैंस उस भाव से उसे न देखेगी। पर देखेगी ज़रूर, और उसका चित्र भी उसकी ज्ञानेंद्रियों पर ठीक वैसा ही उतरेगा, जैसा आदमियों की इंद्रियों पर उतरता है।

इसमें संदेह नहीं कि सोचना या विचार करना---चाहे वह ज्ञानात्मक हो, चाहे न हो---मस्तिष्क की क्रिया है। अतएव उसका संबंध मन से है। और, आदमी से लेकर चींटी तक, सब जीवधारियों में, अपनी-अपनी स्थिति और आवश्यकता के अनुसार, मन होता है। यह नहीं कि किसी में वह बिलकुल ही न