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पृष्ठ:अनामिका.pdf/१२६

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नाचे उस पर श्यामा जागो वीर ! सदा ही सर पर काट रहा है चक्कर काल, छोड़ो अपने सपने, भय क्यों, काटो, काटो यह भ्रम-जाल । दुःख-भार इस भव के ईश्वर, जिनके मन्दिर का दृढ़ द्वार जलती हुई चिताओं में है प्रेत-पिशाचों का आगार; सदा घोर संग्राम छेड़ना उनकी पूजा के उपचार, वीर! डराये कभी न, आये अगर पराजय सौ-सौ बार। चूर-चूर हो स्वार्थ, मान, हृदय हो महाश्मशान, नाचे उसपर श्यामा, घन रण में लेकर निज भीम कृपाण । ०३.४.१९२४. ॐ स्वामी विवेकानन्दजी महाराज की सुविख्यात रचना 'नाचुक ताहाते श्यामा' का अनुवाद । स्वामीजी ने इसमें कोमल और कठोर भावों की वर्णना द्वारा कठोरता की सिद्धि दिखलाई है। साध, सब