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अनामिका

करने के लिये, फेर वानर-दल आश्रय - स्थल।
बैठे रघु-कुल-मणि श्वेत शिला पर; निर्मल जल
ले आये कर-पद-क्षालनार्थ पटु हनूमान;
अन्य वीर सर के गये तीर सन्ध्या-विधान—
वन्दना ईश की करने को, लौटे सत्त्वर,
सन घेर राम को बैठे आज्ञा को तत्पर;
पीछे लक्ष्मण, सामने बिभीषण, भल्लधीर,
सुग्रीव, प्रान्त पर पाद-पह्म के, महावीर;
यूथपति अन्य जो, यथास्थान, हो निर्निमेष।
देखते राम का जित-सरोज-मुख-श्याम-देश।
है अमानिशा; उगलता गगन धन अन्धकार;
खो रहा दिशा का ज्ञान; स्तब्ध है पवन-चार;
अप्रतिहत गरज रहा पीछे अम्बुधि विशाल;
भूधर ज्यों ध्यान मग्न; केवल जलती मशाल।
स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा फिर-फिर संशय,
रह-रह उठता जग जीवन में रावण-जय-भय,
जो हुआ नहीं आज तक हृदय रिपु दम्य—श्रान्त,—
एक भी, अयुत—लक्ष में रहा जो दुराकान्त,

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