पृष्ठ:अनामिका.pdf/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
राम की शक्ति पूजा
 

बोली माता—"तुमने रवि को जब लिया निगल
तब नहीं बोध था तुम्हें, रहे बालक केवल;
यह वही भाव कर रहा तुम्हें व्याकुल रह-रह,
यह लज्जा की है बात कि माँ रहती सह-सह;
यह महाकाश, है जहाँ वास शिव का निर्मल—
पूजते जिन्हें श्रीराम, उसे ग्रसने को चल
क्या नहीं कर रहे तुम अनर्थ?—सोचो मन में;
क्या दी आज्ञा ऐसी कुछ श्रीरघुनन्दन ने?
तुम सेवक हो, छोड़ कर धर्म कर रहे कार्य—
क्या असम्भाव्य हो यह राघव के लिये धार्य?"
कपि हुए नम्र, क्षण में माताछवि हुई लीन,
उनरे धीरे धीरे, गह प्रभु-पद हुए दीन।
राम का विषण्णानन देखते हुए कुछ क्षण,
"हे सखा," विभीषण बोले, "आज प्रसन्न वदन
वह नहीं देख कर जिसे समग्र वीर वानर—
भल्लूक विगत-श्रम हो पाते जीवन निर्जर,
रघुवीर, तीर सब वही तूण में हैं रक्षित,
है वही वक्ष, रण-कुशल-हस्त, बल वही अमित,

: १५५ :