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प्राक्कथन

'अनामिका' नाम की पुस्तिका मेरी रचनाओं का पहला संग्रह है। आदरणीय मित्र स्वर्गीय श्री बाबू महादेव प्रसाद जी सेठ ने प्रकाशित की थी। वे मेरी रचनाओं के पहले प्रशंसक हैं। तब मेरी कृतियाँ पत्र-पत्रिकाओं से प्रायः वापस आती थीं। मैं भी उदास और निराश हो गया था। महादेव बाबू विद्वान् व्यक्ति थे; साथ साथ तेजस्वी और उदार। यद्यपि उनसे मेरा परिचय मेरे समन्वय-सम्पादन-काल में हुआ, फिर भी वैदान्तिक साहित्य से खींच कर हिन्दी में परिचित और प्रगतिशील मुझे उन्हीं ने किया, अपना 'मतवाला' निकाल कर। मेरा उपनाम 'निराला' 'मतवाला' के ही अनुप्रास पर आया था। अस्तु, उस 'अनामिका' की अच्छी कृतियाँ बाद के 'परिमल' नाम के संग्रह में आ गईं थीं, अधूरी निकाल दी गई थीं। इस 'अनामिका' में उसका कोई चिन्ह अवशिष्ट नहीं। यह नामकरण मैंने सिर्फ इसलिये किया है कि इसे उन्हें ही उनकी स्मृति में समर्पित करूँ। उनकी तारीफ में मैंने जब-जब कलम उठाया है, लेखनी रुक गई है। वे मुझे कितना चाहते थे, इसका उल्लेख असम्भव है; और यह ध्रुव सत्य कि वे न होते तो 'निराला' भी न आया होता।

 
लखनऊ श्रीसूर्य्यकान्त त्रिपाठी
२०.१२.३७.