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अनामिका
 

गर्द चिनगीं छा गईं,
प्रायः हुई दुपहर :—
वह तोड़ती पत्थर।
देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार;
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी भङ्कार।
एक छन के बाद वह काँपी सुघर,
दुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा—
'मैं तोड़ती पत्थर।

४, ४, ३७.
 

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