पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१२४

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मनासक्तियोग उतना ही समय हमारे पास है उसे भगवद्भक्तिमें, सेवामें, व्यतीतकर सार्थक करना चाहिए और यदि तत्काल आत्मदर्शन न हो तो धीरज रखना चाहिए। अव्यक्ताद्वयक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे । राध्यागमे प्रलीयन्ते तत्रवाव्यक्तसंज्ञके ॥१८॥ (ब्रह्माका) दिन आरंभ होनेपर सब अव्यक्तमेंसे व्यक्त होते हैं और रात पड़नेपर उनका प्रलय होता है, अर्थात् अव्यक्तमें लय हो जाते हैं । १८ टिप्पली-यह जानकर भी मनुष्यको समझना चाहिए कि उसके हाथमें बहुत थोड़ी सत्ता है । उत्पत्ति और नाशका जोड़ा साथ-साथ चलता ही रहता है। भूतग्रामः स एवाय भूत्वा रात्र्यागमेऽवशः पार्थ' प्रभवत्यहरागमे ।।१९।। हे पार्थ ! यह प्राणियोंका समुदाय इस तरह पैदा हो-होकर, रात पड़नेपर बरबस लय होता है और दिन उगनेपर उत्पन्न होता है । १९ परस्तस्मात्तु भावोऽन्यो- ऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः । स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ॥२०॥ भूत्वा प्रलीयते। यः