पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१४५

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बसवां अध्याय : विभूतियोग सूर्य मैं हूं, वायुओंमें मरीचि में हूं, नक्षत्रोंमें चंद्र मैं २१ वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः । इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥२२॥ वेदोंमें सामवेद में हूं, देवोंमें इंद्र मैं हूं, इंद्रियोंमें मन मैं हूं और प्राणियोंका चेतन मैं हूं। २२ रुद्राणां शंकरश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् । वसूनां पावकश्चास्मि मेरु: शिखरिणामहम् ।।२३।। रुद्रोंमें शंकर मैं हूं, यक्ष और राक्षसोंमें कुबेर मैं हूं, वसुओंमें अग्नि में हूं, पर्वतोंमें मेरु में हूं। २३ पुरोधसां च मुख्य मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् । सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ॥२४॥ हे पार्थ ! पुरोहितोंमें प्रधान बृहस्पति मुझे समझ । सेनापतियोंमें कार्तिक स्वामी मैं हूं और सरोवरों में सागर में हूं। २४ महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् । यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥२५॥ महर्षियोंमें भृगु मैं हूं, वाणीमें एकाक्षरी ॐ में हूं, यज्ञोंमें जप-यज्ञ मैं हूं और स्थावरोंमें हिमालय मैं हूं। २५ अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः । गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ॥२६॥ 1