पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१५१

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न्यारवां मयास : विश्वस्मयनयोम 3 रहस्य कहा है। आपके मुझसे कहे हुए इन वचनोंसे मेरा यह मोह टल गया है : भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया । त्वत्तः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम् ।।२॥ प्राणियोंकी उत्पत्ति, और नाशके संबंध आपसे मैंने विस्तारपूर्वक सुना । हे कमलपत्राक्ष, उसी प्रकार आपका अविनाशी माहात्म्य भी सुना । २ एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर । द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं : पुरुषोत्तम ॥३॥ हे परमेश्वर ! आप जैसा अपनेको पहिचनवाते हैं वैसे ही हैं । हे पुरुषोत्तम ! आपके उस ईश्वरी रूपके दर्शन करनेकी मुझे इच्छा होती है । ३ मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो। योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम् ॥४॥ हे प्रभो ! वह दर्शन करना मेरे लिए आप संभव मानते हैं तो हे योगेश्वर ! उस अव्यय रूपका दर्शन कराइये। श्रीभगवानुवाच पश्य में पार्थ रूपाणि शतशोऽय सहस्रशः । नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च ॥५॥ ४