पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१५३

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ग्यारहवां अध्याय : बिस्वस्पर्शनयोग संबयने कहा- हे राजन् ! योगेश्वर कृष्णने ऐसा कहकर पार्यको अपना परम ईश्वरी रूप दिखलाया । ९ अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भतदर्शनम् अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम् ॥१०॥ वह अनेक मुख और आंखोंवाला, अनेक अद्भुत दर्शनवाला, अनेक दिव्य आभूषणवाला और अनेक उठाये हुए दिव्य शस्त्रोंवाला था। १० दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् । सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्त विश्वतोमुखम् ॥११॥ उसने अनेक दिव्य मालाएँ और वस्त्र धारण कर रखे थे, उसके दिव्य सुगंधित लेप लगे हुए थे। ऐसा वह सर्वप्रकारसे आश्चर्यमय, अनंत, सर्वव्यापी देव था। ११ दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता । यदि भाःसदृशी सास्याद्भासस्तस्य महात्मनः ।।१२।। आकाशमें हजार सूर्योका तेज एकसाथ प्रकाशित हो उठे तो वह तेज उस महात्मा तेज-जैसा कदाचित हो। १२ तत्रकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा । अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा ॥१३॥ वहां इस देवाधिदेवके शरीरमें पांडवने अनेक