पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लोकोंका नाश करनेके लिए यहां आया हूं। प्रत्येक सेनामें जो ये सब योद्धा आये हुए हैं उनमेंसे कोई तेरे लडनेसे इनकार करनेपर भी बचनेवाला नहीं है । ३२ तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून्मुभदव राज्यं समृद्धम् । मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ॥३३॥ इसलिए तू उठ खड़ा हो, कीर्ति प्राप्तकर, शत्रुको जीतकर धनधान्यसे भरा हुआ राज्य भोग। इन्हें मैंने पहलेसे ही मार रखा है। हे सव्यसाची ! तू तो केवल निमित्तरूप बन । ३३ द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कणं तथान्यानपि योषवीरान् । मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान् ॥३४॥ द्रोण, भीष्म, जयद्रथ, कर्ण और अन्यान्य योद्धाओं को मैं मार ही चुका हूं। उन्हें तू मार । डर मत, लड़। शत्रुको तू रणमें जीतनेको है। ३४ • एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य कृताञ्जलिःपमानः किरीटी।