पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१९

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पहला अध्याय मनविवादयोग इतने में सफेद घोड़ोंवाले बड़े रथपर बैठे हुए श्रीकृष्ण और अर्जुनने दिव्य शंख बजाये । १४ पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनंजयः । पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्ख भीमकर्मा वृकोदरः ॥१५॥ श्रीकृष्णने पांचजन्य शंख बजाया। धनंजय अर्जुनने देवदत्त शंख बजाया। भयंकर कर्मवाले भीमने पौड़ नामक महाशंख बजाया। १५ अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः । नकुल: महदेवश्च सुघोषमणिपुष्पको ॥१६॥ कुंतीपुत्र राजा युधिष्ठिरने अनंतविजय नामक शंख बजाया और नकुलने सुघोष तथा सहदेवने मणि- पुष्पक नामक शंख बजाया । काश्यश्च परमेष्वास: शिखण्डी च महारथः । धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ॥१७॥ बड़े धनुषवाले काशिराज, महारथी शिखंडी, धृष्टद्युम्न, विराटराज, अजेय सात्यकि, १७ द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते । सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक् ॥१८॥ द्रुपदराज, द्रौपदीके पुत्र, सुभद्रापुत्र महाबाहु अभिमन्यु, इन सबने, हे राजन् ! अपने-अपने शंख बजाए। १८