पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चौपाया पुनविनामयोप सर्वद्वारेषु वेहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते। शानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्वमित्युत ॥११॥ सब इंद्रियोंद्वारा इस देहमें जब प्रकाश और ज्ञानका उद्भव होता है तब सत्त्वगुणकी वृद्धि हुई है ऐसा जानना चाहिए। लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा । रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ ॥१२॥ हे भरतर्षभ ! जब रजोगुणकी वृद्धि होती है तब लोभ प्रवृत्ति, कोका आरंभ, अशांति और इच्छाका उदय होता है। १२ अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च । तमस्येतानि जायन्ते विवृद्ध कुरुनन्दन ॥१३॥ हे कुरुनंदन ! जब तमोगुणकी वृद्धि होती है तब अज्ञान, मंदता, असावधानी और मोह उत्पन्न होता यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत् । तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते ॥१४॥ सत्त्वगुणकी वृद्धि हुई होनेपर देहधारी मरता है तो वह उत्तम शानियोंके निर्मल लोकको पाता है। १४ रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते । तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते ॥१५॥