२४ अनासक्तियोग भयके कारण रणसे भागा मानेगे और तुझे तुच्छ समझेंगे। अवाच्यवादांश्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिताः । निन्दन्तस्तव सामर्थ्य ततो दुःखतरं नु किम् ।।३६।। और तेरे शत्रु तेरे बलकी निंदा करते हुए बहुत- सी न कहनेयोग्य बातें कहेंगे। इससे अधिक दुःख- दाबी और क्या हो सकता है ? हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्ग जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् । तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय ॥३७॥ यदि तू मारा जायगा तो तुझे स्वर्ग मिलेगा। यदि तू जीतेगा तो पृथ्वी भोगेगा। अतः हे कौंतेय ! लड़नेका निश्चय करके तू खड़ा हो । ३७ टिप्पणी-इस प्रकार भगवानने आत्माका नित्यत्व और देहका अनित्यत्व बतलाया। फिर यह भी बतलाया कि अनायासप्राप्त युद्ध करनेमें क्षत्रियको धर्मकी बाधा नहीं होती। इस प्रकार ३१वे श्लोकसे भगवानने परमार्थके साथ उपयोगका मेल मिलाया है । इतना कहकर फिर भगवान गीताके प्रधान उपदेशका दिग्दर्शन एक श्लोकमें कराते है।
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